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फुलपाखरू

सफर में अक्सर कुछ सवाल साथ चलने लगते हैं बिना बुलाए, बिना जवाबों की उम्मीद के। जैसे ये पहाड़, जिन पर जब कभी किसी ने पहली बार कदम रखा होगा… क्या उसे मालूम था कि गुलाबों की खुशबू का रंग लाल होता है?   हवा यहां कुछ और ही कहती है। रास्ते पथरीले हैं, लेकिन हर मोड़ पर कोई ना कोई नज़ारा आंखों में कुछ एहसास छोड़ जाता है। एक तितली या कहो, फुलपाखरू (शब्द जो हाल ही में सीखा) अचानक सामने आ जाती है, जैसे उसी के पीछे-पीछे चल रहा हो मन। वो उड़ती है तो लगता है जैसे वक़्त थम गया हो, जैसे ऊंचाई की परिभाषा बदल गई हो, और जब वो फूलपाखरु पास हो तो शब्द शांत रहते हैं मगर मन और आँखें बिल्कुल नहीं। यही तो हासिल है इन यात्राओं का, चलते रहना, महसूस करते जाना, और भीतर कहीं कुछ छोड़ते जाना। साल गुज़रेंगे, शायद सब कुछ यहीं लौट आए। और फिर किसी दिन, किसी शाम की हल्की ठंड में, फूलपाखरु के साथ की तलाश में चुपचाप कूंच कर जाना होगा… अगली किसी यात्रा के लिए। 🌻  -( लिखी जा रही कहानी का हिस्सा )- 

Luz y Sombra – The Art of Contrast in Filmmaking 🎬

Luz y Sombra – The Art of Contrast in Filmmaking 🎬 Cinema thrives on contrasts—light and shadow, hope and despair, chaos and silence. As filmmakers and screenwriters, we sculpt stories in this duality, knowing that brilliance shines brightest against darkness. A well-lit scene may capture beauty, but a well-crafted shadow reveals depth. Just like in life, our narratives find meaning in the spaces between light and dark. What’s your favorite example of contrast in cinema? #filmmaking #director #cinema #films #rahulabhua #screenwriter #writer #filmmaker #art #lights #mainshunyahisahi #actor #creative   

ये freedom नहीं नीचता है - लेख

जो भी कम-अक्ल मानसिक रूप से छोटे लोग इस बच्ची का मज़ाक बना रहे हैं उन सभी से बस इतना कहना चाहता हूं 'जाओ और खुद को आंको', सस्ते इंटरनेट की आड़ में जहां बस troll करना ही इकलौता काम है तुम छोटी सोच वालों का, कम से कम ये तो सोचो इस बच्ची ने क्या ये सब नहीं सहा होगा? उस सब भद्दी और फूहड़ता को सुने अनसुने किए उसने जो कामयाबी हासिल की क्या ये नहीं बताती की उस बच्ची की सोच तुम सब troll करने वालो के लिए एक जवाब है। हम इंसानियत को पीछे छोड़कर आखिर जा कहां रहे हैं? सोचिए। Proud of you Sister ❤️ Thank you for making all Indians proud ❤️ #PrachiNigam #UPresults #10thResult #results 

तुम तो मत बिको - लेख

पॉलिटिकल पार्टियों में इतना पलायन इधर से उधर हो रहा है, ये बिल्कुल ऐसा है जैसे कोई मौका-परस्त सरकारी 'प्रेमिका' जिसने शुरुवात में अपना 'हाथ काट' कर, 'नाक रगड़' कर आपसे रिश्ते में बने रहने के लिए रिलेशनशिप की भीख मांगी था, जिसके लिए तब 'अय्याशी' एक बुरी चीज हुआ करती थी आज समय ख़राब होने पर वो उस 'प्रेमी' को छोड़कर दूसरे पाले में घूम रही है क्योंकि सत्ता कुछ सालों तक उस पाले में रहने वाली है।  ऐसा इस 'प्रेमिका' ने पिछले सभी 'प्रेमियों' के साथ किया और तब के प्रेमी और अब के प्रेमी सभी जानते हैं कि ये प्रेमिका कितनी 'महान' है लेकिन फिर भी इसे स्वीकार कर रहे हैं, इसकी पीछे की वजह 'शारीरिक' हो सकती है। यहां कौन गलत कौन सही ये तो उनकी अपनी 'FREEDOM' है सवाल यहां सिर्फ उन 'प्रेमियों' से हैं यानी 'जनता' से है, जो मौका-परस्त 'प्रेमिका' यानी 'नेता' आज इधर के और कल उधर के हैं, जिनके लिए सही या गलत उनकी सहूलियत के हिसाब से है तो समय है अब तुम 'प्रेमियों' यानी 'जनता' को जागन...

अध जल गगरी छलकत जाए - लेख #Loyalty

Watch The Video Here  - https://youtu.be/DCo96HkSHm0?si=oYVRoYBeXEW9JaDC क्या कहूं..क्या ही कहा जाए..कुछ भी कहने या धारणा बना लेने से पहले दोनों पक्षों को सुनिए (पहले ये वीडियो पूरा देख लीजिए)।  अक्सर होता क्या है की एक तरफा बात सुनके धारणा बनाने वाले 'कंधे' दूसरे पक्ष को सुने बगैर स्त्री-पुरुष और बेचारगी को सिर्फ एक तरफ (ज्यादातर महिलाओं के पक्ष में – जबकि अगर आप समानता को सच में मानते हैं तो बराबर होना चाहिए) का पूरा सच मानकर modern judgement पास करने लगते हैं। खेल सामने वाले की नीयत का खेल भी तो हो सकता है।  डिग्री वाले अनपढ़ सिर्फ एक प्रमुख लिंग-विशेष के हैं इसलिए सही हैं अगर ये मानकर judgement देने हैं तो समानता का रोना गाना बेमानी है।  सुनिए...गढ़िए...समझिए..फिर धारणा बनाइए एक बात और सिर्फ क्योंकि कोई इंसान (महिला और पुरुष या अन्य लिंग कोई भी) शादीशुदा 'था' या उसका कोई रिश्ता था जो खराब निकला तो क्या उस इंसान को अपनी सहूलियत और ज़रूरत के हिसाब से पहले सही और मतलब निकल जाने पर गलत कहकर अपना गंद छुपाया जायेगा?  सबसे ज्यादा आश्चर्य इस पर होता है क...

Publicity और Likes के भूखे लोग #CancerAwareness

भई इन पब्लिसिटी के भूखों का क्या ही किया जाए? Likes के भूखे ये narcissist लोग पब्लिसिटी और लोगो की good-books में बने रहने के लिए अपनी मौत तक ड्रामा बना रहे हैं। इसीलिए मुझे लगता है की भारत में इंटरनेट सस्ता नहीं होना चाहिए, कैंसर का मज़ाक बना कर रख दिया है इस दीदी ने (नाम मेंशन नहीं करूंगा और आपको भी नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे यही चाहिए था)  लोग अभिनेता, जर्नलिस्ट, डॉक्टर, वकील जब बन रहे होते हैं तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं की हम बदलाव लाएंगे और बन जाने के बाद अपनी औकात भूलने लगते हैं। वो जो खुद को influencers दिखाते थे बाद में social-media पर नंगपना करके likes बटोरते हैं ताकि followers उन्हे कूल समझे।  आज़ादी का मतलब ये नहीं की रोड पर नंगे घूमोगे और कहोगे की संविधान में आज़ादी हमारा अधिकार है। नशा उतरे तो समझना, तुम्हारी social media पर की जाने वाली हरकते तुम्हारे followers को inspire करती है या नहीं? और तुम्हारे छपरी दोस्तों के बारे में तो कहा ही क्या जाए। Cancer awareness के नाम पर जो किया गया बहुत छिछले दर्जे का था, जिन्होंने cancer की वजह से अपने परिवार वालो को खोया उनस...

तुम्हारे नाम सखी - लेख

'प्रिया ने मुझे बहुत झेला है..सब कुछ उसके नाम.." - पियूष मिश्रा सर ने अपनी प्रिया के लिए इस caption के साथ में ये बेइंतेहा खूबसूरत वीडियो पोस्ट किया है। क्या ऐसे साथी होते हैं? अब? जो तब साथ हो जब हर परिस्तिथि आपको प्यार के खिलाफ कर रही हो, जब आपकी अना से ज़्यादा प्यार, प्यार और सिर्फ सही प्यार की value ज़्यादा हो, जब दिखावा नहीं साथ ज़रूरी हो, जब दिखावटी दोस्तों और कंधो की केयर में दिमाग, जिस्म और दिल न बदले, जब उतार-चढ़ाव से घबराकर भागने की बजाये आप अपने प्रेमी संग डट कर खड़े हो, सब दिन एक जैसे चाहिए (बिना उतार–चढ़ाव वाले) तो प्रेम नहीं कुछ और कीजिए जिसमें 'मुनाफा' बना रहे। क्या ऐसे साथी होते हैं? अब? होते होंगे..अब तो ज़माना Red Flag , Green Flag, toxicity, woke-culture का है (सभी के लिए नहीं सिर्फ उनके लिए जो इसे अपनी सहूलियत के हिसाब से (एक के बाद दूसरे पार्टनर के खिलाफ) सिर्फ इसलिए इस्तेमाल करते हैं ताकि कहीं से किसी नई ओर जाना हो) जबतक पार्टी में आपके हाथ में मदिरा का ग्लास ना हो (मैं ये साफ कर दूं की मैं आपसे पूरी तरह इत्तेफ़ाक रखता हूं की शराब पीना, गुटका खाना बिल्क...

कटी पतंग 'पाकीज़ा' - लेख

"जिनकी रूहें मर जाती हैं और जिस्म ज़िंदा रहते हैं..."  "देख ना बिब्बन, वो पतंग... वो पतंग कितनी मिलती-जुलती है मुझसे..मेरी ही तरह कटी हुई..नामुराद..कम्बख़्त.." - नरगिस (पाकीज़ा)  दादी की पसंदीदा फिल्म हुआ करती थी, बचपन में ना जाने कितनी बार दिखाई गयी (पहले) बाद में खुद से देखी और हर बार नया पाया बिलकुल रफ़ी साहब के गीतों की तरह।  ये एक Frame है जो दिल में छपा हुआ है की कभी किसी दिन इस frame को tribute दूंगा अपने किसी काम में। ये frame इतना मामूली होने के बावजूद इतना खूबसूरत है की बयान कर पाना मुश्किल है। एक तरफ नरगिस (मीना कुमारी) है और दूसरी तरफ एक कटी पतंग जो ना तो आसमान की है और ना ही ज़मीन की.. जो शायद कुछ समय के लिए बादलों, हवाओं, पंछियों के बीच गोते खा रही थी लेकिन अभी वो एक पेड़ पर है, ज़िन्दगी यही है..आप आसमान चाहते हैं , ज़मीन चाहते हैं या फिर कुछ और?  यूँ तो फिल्म के तमाम ऐसे सीन्स हैं जो बेहद खूबसूरत हैं (कुछ कमियां भी हैं - वो तो हर किसी में होती हैं), उनमे से एक और मेरा पसंदीदा है जब सलीम अहमद (राजकुमार) नरगिस (मीना कुमारी) को अपने घर ले जाता है और ...

Javed Akhtar on Modern Feminism - लेख

“I’ll sleep with men of all nationalities before getting married..” – said Anushka’s character in the movie ‘Jab Tak Hai Jaan’ जावेद अख्तर साहब ने हाल में एक इंटरव्यू में दिमागी-मॉडर्न so called feminism (दोहरे फेमिनिज्म और उसको अपनी सहूलियत के हिसाब से इस्तेमाल करने वालो से) पर एक बड़ी संजीदा बात की है। क्या है evolving concept of modern women in hindi cinema (वैसे men concept पर भी बात की जानी चाहिए) सिर्फ कई मर्दो के सोना है? chemist पर जाकर कंडोम खरीद लेना है? सोशल मीडिया पर खुद को दूसरे वर्ग से ऊपर दिखा कर खुद को victim दिखाना है? सभी मर्द एक से होते हैं ये सब कहना है?  Empower होने के मायने आखिर है क्या क्यूंकि ऊपर लिखे कुछ उदहारण ही 'सिर्फ' आपको आपका empowered होना लगता है तो यकीन मानिये आप बीमार हैं , कईयों के संग सोना या कुछ भी करना आपका निजी अधिकार है लेकिन सिर्फ इसी से आप empowered हो जायेंगे ये सोचने वाली बात है (यहाँ मर्द औरत सभी की बात हो रही है)  'बंदिनी', 'सुजाता', 'मदर इंडिया' and many more जैसा Serious अभिनय करना है यदि ये आप...

Pursuit of Happyness (2006) - लेख

The Pursuit of Happyness (2006):  जब भी सवाल उठता है आखि़र ज़िंदगी में खुशी के मायने क्या हैं, क्या सिर्फ दिखावा ही ज़िंदगी होती है? ऐसे कई सवालों के जवाबों से रूबरू कराती है ये बेहद खूबसूरत फिल्म। एक पिता, एक इंसान जो इस वजह से ठुकरा दिया गया है क्योंकि उसका समय ठीक नहीं चल रहा है और वो इतना अडिग है कि हार मानने को तैयार नहीं, अपने दुख व्यक्त नहीं करता और बस जानता है की कभी वो सुबह तो आयेगी। इंसान को खुशियों के पीछे भागना होता है और ये जीवन का अमूल्य हिस्सा है, लेकिन खुशियों के पीछे भागने का मतलब भीख कतई नहीं होता।  बचपन से लेकर अबतक फिल्म कई बार देख चुका हूं और हर बार अंत में ये जीवांत कर देती है।  कहानियां, फिल्में या ज़िंदगी प्रेम से भरी होंगी तो खुशी ही देती हैं। कुछ दिल को छू जाने वाली ऐसी बाते भी हैं जो उसकी मानसिकता दिखाती है, जैसे –  "Hey. Don't ever let somebody tell you... You can't do something. Not even me" - "Christopher Gardner: [narrating, at a payphone, raining, after learning Linda is taking Christopher away from him] It was right th...

रफ़ी साहब और हम दोनों

’..अब हक़ तो नहीं मुझे लेकिन अब प्यार करते हो किसी से?’ – उसने पूछा ’हां.....' – जैसे ही मैंने जवाब दिया उसने मेरी तरफ नज़र उठाकर देखा,  मैंने बात पूरी की ’हां, रफ़ी साहब के गीतों से, ये गीत मेरी ख़ामोशी से बात करते हैं। तुम जानती हो जब मैं इन गीतों को रफ़ी साहब के साथ गुनगुनाता हूं तो ये मुझको कभी टोकते नहीं, खामियां नहीं निकालते, ये ख़ामोशी से मेरी बेसुरी आवाज़ को सुनते हैं.." (लिखी जा रही एक कहानी का अंश) साहब का जन्मदिन है आज, आपसे मुहब्बत है और आप ही मुहब्बत हैं, मिलना अक्सर सपनों में होता है और सुनना हर रोज़। आप यहीं आसपास हैं.. '..आप तो बस आप हैं आपका जवाब क्या' ❤️ #MohdRafi #RafiSahab

Music Videos वाले self-claimed एक्टर्स - लेख

अभिनेता और स्वघोषित एक्टर्स में क्या फ़र्क होता है? एक कहता अभिनय वो पेशा (Calling पहले) है जिसमे challanges तो बहुत हैं लेकिन शॉर्टकट्स नहीं। आप अभिनेता हैं, अभिनय आता है तो काम ज़रूर मिलेगा, काम पाने के लिए आपको किसी तीसरी चीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और ना ही ऐसी किसी चीज़ को डिफेंड करने की जरूरत पड़ेगी। हां, वो बात अलग है जब तक काम मिलेगा तबतक आप अभिनेता बने रह पाएंगे या नहीं। दूसरा कहता है चुम्बन, steamy scenes आर्ट है, वो आर्ट जिसका weightage अच्छे अभिनय के बराबर है, अब democracy में इस पर आप बहस करेंगे तो जवाब में 'Patriacy', 'Empowerment' जैसे भारी शब्द सुनेंगे (जिनमें logic दूर-दूर तक नहीं होगा) इसलिए जिन्हें अपने अभिनय पर भरोसा नहीं वो तीसरी चीज़ों को ही अभिनय कहेंगे क्योंकि शॉर्टकट्स से उन्हें एक समय तक काम मिलने में आसानी होगी लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं की जो असल अभिनय कर रहे हैं वो और आप एक से हैं। 1000 प्रेम प्रासंगिक steamy म्यूजिक विडियोज कर लेने के बाद अगर आप कहेंगे की मैं और मीना कुमारी/स्मिता पाटील एक बराबर हैं तो ये कुतर्क आप या आपकी सोच वाले लोग ज़रू...

क्या गंभीर को Bi-Polar Disorder है? – लेख

क्या गंभीर को Bi-Polar Disorder है? एक जानकार की मानें तो गंभीर के इस बयान से तो ये ही कहा जायेगा (उनके द्वारा)। सच्चाई क्या है? ‘किसी का भी सच सौ फीसदी सच नहीं होता है’! साथ ही ‘एक इंसान में रहते हैं कई इंसान’, इधर गंभीर अगर धोनी को अपना Best Batting Partner कह रहे हैं और दूसरी चीजों पर धोनी या अन्य किसी खिलाड़ी की आलोचना भी करते हैं तो ये कोई Disorder कैसे हो गया? एक ही इंसान के लिए उसके किसी एक काम पर आपकी राय भिन्न हो सकती है और उसी इंसान की किसी दूसरी बात पर राय भिन्न हो सकती है, बात सिर्फ और सिर्फ LOGIC की है।  गौर से सोचेंगे तो समझेंगे, अगर Science के चश्मे से देखेंगे तो इस दुनिया में कोई भी इंसान नॉर्मल तो नहीं पायेंगे। इंसानों का एक ढर्रा वो भी है जो इस पृथ्वी को दूसरी दुनिया का नर्क मानता है, एक ढर्रा वो भी है जो इस जीवन को सिर्फ और सिर्फ Simulation Theory पर based मानता है, एक Gallileo भी था जिसने कहा की सूरज पृथ्वी का चक्कर नहीं काट रहा बल्कि पृथ्वी घूम रही है और सूरज के चक्कर लगा रही है, लेकिन उस वक्त मान्यता इसके उलट थी इसलिए Galileo को फांसी की सज़ा सुनाई...

सोच - राहुल अभुआ

मैं हमेशा मानता हूं की 'रंग दीवारों के उतरते/बदलते हैं मीनारों के नहीं' आपकी सोच आपकी ज़िंदगी बनाती है। जिन लोगों की सोच से खेलना आसान हो उन्हें कुछ भी घटिया वस्तु को नयी सोच कहकर बेचा जा सकता है और उन्हें लगने लगता है कि क्रांति जो अबतक किसी ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई थी वो अब होने को है। ये ही हमारे देश के साथ एडवरटाइजिंग एजेंसीज करतीं हैं। जहां लोग आज कार्ल मार्क्स को पढ़कर मार्क्सवादी हो जाएं, अगले दिन भीम को पढ़कर उन्हें बिना जाने समझे जय भीम के नारे लगाने लगें (वैसे भीम को पूजना नहीं पढ़ना ज़रूरी है), फिर अगले किसी दिन गांधी को पढ़कर बिना समझे कुछ दिनों के लिए गांधीवादी हो जाएं, उन लोगों की अपनी सोच बढ़ने के बजाए वो ऐसी मानसिकता पाल लेते हैं की दुनिया में सभी कुछ जो हो रहा है उस सब पर हमसे ज़्यादा किसी को समझ नहीं, अंत में ये लोग जब उस गुमान से बाहर आते हैं तो देर हो चुकी होती है। क्रांति जा चुकी होती है, बाकी दुनिया आगे बढ़ चुकी होती है और ऐसे लोगों का अतीत सिग्नल पर खड़ा इनपर हँस रहा होता है। - राहुल अभुआ | Main Shunya Hi Sahi #RahulAbhua #MainShunyaHiSahi 

समाज और फूहड़ता - राहुल अभुआ

आमिर खान और किरण राव के इस खूबसूरत फैसले पर खुश होने के बजाये कुछ पढ़े लिखे डिग्री वाले अनपढ़ भाईसाहब और दीदी बेहद फूहड़ सोच के साथ घटिया और गलीच बातें लिख रहे हैं। तरस आता है इनकी मेंटेलिटी पर। समाज के इस ढ़र्रे की सोच आज भी वोहि है - अगर दो गलत लोग एक रिश्ते में बंध गए और उन दोनों को ही इसका एहसास भी हो गया तो बजाये अपने रास्ते अलग करके खुश रहने के उन्हें ताउम्र एक दूसरे की ज़िन्दगी नर्क बनाते रहना ही सही है - ऐसी इन लोगों की सोच होती है। टाइम ट्रेवल जैसी कोई चीज़ है या नहीं इसपर बहस बाद की बात है लेकिन ये लोग आज भी कई सदियाँ पीछे से समय में ट्रेवल करके 2021 में आ गए हैं।  इन्हे समाज में बदलाव दूसरे के घर में चाहिए, अपने इधर हो तो वो इन्हे चुभता है। मालूम है इनको तकलीफ क्या है? - अच्छा होता दोनों लोग तलाक़ न लेकर आपस में लड़ते मरते रहते, तो उससे इन्हे भी एक गॉसिप का टॉपिक मिलता रहता, और शायद साहिर लुधियानवी साहब की कही बात को गलत साबित करने की नापक कोशिश भी करते, जिसमे साहिर साहब ने कहा - 'वो अफ़साना जिसे अंजाम तक पहुँचाना न हो मुमकिन उसे खूबसूरत मोड़ दे कर छोडना अच्छा' - ...

स्त्रीत्व

लखनऊ | यह तस्वीर देखने भर से आपको बस इतना ही पता चलता है कि ई-रिक्शा है, जिसकी ड्राइवर ग़ैर-मामूली तौर पर एक महिला हैं.  यह महिला बिठाना देवी हैं. महानगर में रहती हैं. यह ई-रिक्शा उन्होंने अपनी मजदूरी से जुटाई रक़म से ख़रीदा है. यों इसमें भी कोई ख़ास बात नहीं.  ख़ास बात मगर यह है कि लॉकडाउन के दौरान जिन राहगीरों को कोई साधन नहीं मिलता, उन्हें वह ठिकाने तक छोड़ती हैं मगर उनसे भाड़ा नहीं लेतीं. इसी तरह अस्पताल के लिए निकले मरीज़ों को उनके ई-रिक्शा में सवारी का कोई पैसा नहीं देना होता.   ये महिलाएं मिसाल हैं, वो नहीं, जो बपौती और ढेड़ मानसिकता के साथ रोड़ पर चीखने को फेमिनिज्म कहें।