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समाज और फूहड़ता - राहुल अभुआ

आमिर खान और किरण राव के इस खूबसूरत फैसले पर खुश होने के बजाये कुछ पढ़े लिखे डिग्री वाले अनपढ़ भाईसाहब और दीदी बेहद फूहड़ सोच के साथ घटिया और गलीच बातें लिख रहे हैं। तरस आता है इनकी मेंटेलिटी पर।

समाज के इस ढ़र्रे की सोच आज भी वोहि है - अगर दो गलत लोग एक रिश्ते में बंध गए और उन दोनों को ही इसका एहसास भी हो गया तो बजाये अपने रास्ते अलग करके खुश रहने के उन्हें ताउम्र एक दूसरे की ज़िन्दगी नर्क बनाते रहना ही सही है - ऐसी इन लोगों की सोच होती है। टाइम ट्रेवल जैसी कोई चीज़ है या नहीं इसपर बहस बाद की बात है लेकिन ये लोग आज भी कई सदियाँ पीछे से समय में ट्रेवल करके 2021 में आ गए हैं। 
इन्हे समाज में बदलाव दूसरे के घर में चाहिए, अपने इधर हो तो वो इन्हे चुभता है।

मालूम है इनको तकलीफ क्या है?
- अच्छा होता दोनों लोग तलाक़ न लेकर आपस में लड़ते मरते रहते, तो उससे इन्हे भी एक गॉसिप का टॉपिक मिलता रहता, और शायद साहिर लुधियानवी साहब की कही बात को गलत साबित करने की नापक कोशिश भी करते, जिसमे साहिर साहब ने कहा -
'वो अफ़साना जिसे अंजाम तक पहुँचाना न हो मुमकिन
उसे खूबसूरत मोड़ दे कर छोडना अच्छा'

- "अरे आमिर खान तो है ही लफंडर... अय्याश है जी अय्याश...नशा करता है..मिल गयी होगी कोई और तो छोड़ दिया बस" - ये कहने से वंचित रह जाते ये लोग

फिर आती है एक जंगली सोच - "उसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी की वो मुझे छोड़ दे, ज़िन्दगी नर्क कर दूंगी/दूंगा उसकी" - ये ज़हर खुद में लेकर अपने संवैधानिक अधिकारो को गलत तरीके से इस्तेमाल करके आप दूसरे साथी की ज़िन्दगी में तमाम रोड़े अटका सकते/सकती हैं (वो भी सिर्फ कुछ समय तक) लेकिन क्या इससे कुछ भी हासिल होगा? सोचिये!

अरे यार दोनों अपनी ज़िन्दगी से खुश थे तो साथ रहे जब लगने लगा दोनों सेम-पेज पर नहीं तो अलग होकर खुश हैं। उनपर भद्दे कमेंट्स करने से क्या मिल जायेगा तुम्हे? 
सवाल उन फेक फेमिनिस्ट दीदियों से भी है जो फेमिनिज्म का झंडा लेकर फिरती हैं अपनी सहूलियत के हिसाब से लेकिन कोई लड़की अगर जीन्स पहन ले, सिगरेट पीती दिख जाए, थोड़ी बोल्ड हो तो उन्हें वो 'वेश्या' लगती है।
जो मेहबूब के दुख दर्द में साथ देने का वचन लेकर आती है और फिर उन्हें छोटे घर बुरे लगते हैं, जिन्हे लव-स्टोरीज़ सिर्फ फिल्मों में अच्छी लगती हैं असल ज़िन्दगी में हो तो ये उन लड़कियों-लड़कों को जान से मार देने के खाप पंचायतों के हक़ में हैं और चुप्पी साध लेती हैं।
एक कागज़ का टुकड़ा जिसे डिग्री कहते हैं वो आपके सभ्य होने का प्रमाण नहीं हो सकता। यही लडकियां खुलेआम आमिर खान पर अपने दिमाग का गंद उड़ेल रहीं हैं।

सबसे खूबसूरत बात ये है की 2 लोग जो रिश्ते में बँधे और कभी अलग न हो, ताउम्र साथ रहें - ये दुनिया की सबसे खूबसूरत बात है, लेकिन हर इंसान उतना लकी नहीं होता है इसलिए उन्हें अगर रिश्ते में आने का हक़ है तो अलग होकर खुश रहने का भी हक़ है, किसने क्या खोया क्या पाया..वो नफा नुकसान आपके आज से ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है। और ये हक़ तुम्हारा फूहड़ समाज भी उनसे नहीं छीन सकता।

आंख से पट्टी हटाइये और अपनी खुदकी आँखों से दुनिया देखिये पॉजिटिविटी के साथ जीने की कोशिश कीजिये, छोटी छोटी ख़ुशियों में जीइये, दुनिया खूबसूरत है।

‘मैं ये लेख पढ़ना चाहता हूं...किसी को मिले तो मुझसे साझा कीजियेगा' 🌻

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Comments

  1. @Rahul Abhua ...... आपने भारतीय समाज के जिन लोगों के ऊपर अपने विचार रखे हैं , आपको तो मालूम ही होगा कि ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने मनपसंद की ज़िंदगी नहीं जीने पाए हैं। दूसरों की आज़ादी पर वही ऊंगली उठाते हैं जिन्होंने अपने परिवार , परिस्थिति और समाज के दबाव में अपनी मानसिक आज़ादी गिरवी रखा हुआ होता है ।
    ये मन ही मन में तो वही ज़िन्दगी जीना चाहते हैं लेकिन साहस ना होने के कारण हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।
    मेरा तो यही मानना है कि अगर कोई आज़ाद ज़िंदगी जीना चाहता है मगर जी नहीं पाता तो उसे अपने दिल की आवाज़ सुनते हुए किसी के भी ऊपर तंज नहीं कसना चाहिए। क्यों कि
    हर इंसान को अपनी ज़िंदगी अपनी परिस्थितियों के मुताबिक़ जीने का हक़ है।

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