लखनऊ | यह तस्वीर देखने भर से आपको बस इतना ही पता चलता है कि ई-रिक्शा है, जिसकी ड्राइवर ग़ैर-मामूली तौर पर एक महिला हैं.
यह महिला बिठाना देवी हैं. महानगर में रहती हैं. यह ई-रिक्शा उन्होंने अपनी मजदूरी से जुटाई रक़म से ख़रीदा है. यों इसमें भी कोई ख़ास बात नहीं.
ख़ास बात मगर यह है कि लॉकडाउन के दौरान जिन राहगीरों को कोई साधन नहीं मिलता, उन्हें वह ठिकाने तक छोड़ती हैं मगर उनसे भाड़ा नहीं लेतीं. इसी तरह अस्पताल के लिए निकले मरीज़ों को उनके ई-रिक्शा में सवारी का कोई पैसा नहीं देना होता.
ये महिलाएं मिसाल हैं, वो नहीं, जो बपौती और ढेड़ मानसिकता के साथ रोड़ पर चीखने को फेमिनिज्म कहें।
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