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Pursuit of Happyness (2006) - लेख


The Pursuit of Happyness (2006): 

जब भी सवाल उठता है आखि़र ज़िंदगी में खुशी के मायने क्या हैं, क्या सिर्फ दिखावा ही ज़िंदगी होती है? ऐसे कई सवालों के जवाबों से रूबरू कराती है ये बेहद खूबसूरत फिल्म।
एक पिता, एक इंसान जो इस वजह से ठुकरा दिया गया है क्योंकि उसका समय ठीक नहीं चल रहा है और वो इतना अडिग है कि हार मानने को तैयार नहीं, अपने दुख व्यक्त नहीं करता और बस जानता है की कभी वो सुबह तो आयेगी।

इंसान को खुशियों के पीछे भागना होता है और ये जीवन का अमूल्य हिस्सा है, लेकिन खुशियों के पीछे भागने का मतलब भीख कतई नहीं होता। 
बचपन से लेकर अबतक फिल्म कई बार देख चुका हूं और हर बार अंत में ये जीवांत कर देती है। 
कहानियां, फिल्में या ज़िंदगी प्रेम से भरी होंगी तो खुशी ही देती हैं।

कुछ दिल को छू जाने वाली ऐसी बाते भी हैं जो उसकी मानसिकता दिखाती है, जैसे – 
"Hey. Don't ever let somebody tell you... You can't do something. Not even me"

- "Christopher Gardner: [narrating, at a payphone, raining, after learning Linda is taking Christopher away from him] It was right then that I started thinking about Thomas Jefferson on the Declaration of Independence and the part about our right to life, liberty, and the pursuit of happiness. And I remember thinking how did he know to put the pursuit part in there? That maybe happiness is something that we can only pursue and maybe we can actually never have it. No matter what. How did he know that?"

चाहे फिल्म का आखिरी दृश्य हो जहां क्रिस्टोफ़र बिल्डिंग से निकलकर भीड़ में आता है या फिर जब वो अपने बेटे क्रिस के साथ ट्रेन वाशरूम में लेटा रोता हुआ बस सुबह होने का इंतज़ार करता है या फिर वो एहसास जो उसके चेहरे पर वो खराब मशीन ठीक कर लेने के बाद आता है – हर एक हिस्सा दर्शाता है जीवन और उसके उतार-चढ़ाव। 

हम इंसान होते हुए कई बार कितने असहाय हो जाते हैं और हार मान लेते हैं लेकिन जीवन बस हार नहीं उसके बाद संभल पाने का एहसास ज़िंदगी है।

Happiness में 'I' आए या 'Y' मतलब जीवन को समझने और मुस्कुराकर जीने में है। 
अंत में सब ठीक होता है अगर ठीक नहीं हुआ है तो वो अंत नहीं है।

– राहुल अभुआ

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