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Showing posts from May, 2021

लवसूत्र - राहुल अभुआ

तुमको 'मिकेश' याद है? कैसे अपने अल्हडपने से 'तानिया' को irritate करता है  और Casual से 'Permanent' हो जाता है, तुमको 'फैज़ल' याद है? कैसे 'मोहसीना' से बिना परमिशन लिये ड़ांत खा जाता है, तुमको 'प्रेम' याद है? कैसे 'सुमन' के साथ से  उसको पा पाता है, तुमको याद होंगे 'सचिव जी' जो सारी भाग-दौड़ के बाद ही सही  टंकी पे चढकर 'रिन्की' से मिल पाता है ये सब लोग एक-दूसरे से मुख़्तलिफ़ (अलग) हैं  पर पता है एक बात जो इनमे कॉमन है, वो ये की  हालातों से जीतें हैं ये सब, ज़िन्दगी 23 का पहाड़ा नहीं, TWO की TABLE है जो गुणा होगी तो EVEN ही बनायेगी, ODD नहीं.. (अगली किताब और फिल्म 'लवसूत्र' के एक सीन का हिस्सा)  - राहुल अभुआ 'ज़फर' (all rights reserved under SWA)

उसको समझ नहीं आया - राहुल अभुआ

उसको समझ नहीं आया  तौहीनो पर भी क्यों चुप थे हम उसको समझ नहीं आया हम रखते हैं मगरूरों को फ़र्श पर उसको समझ नहीं आया अमां तेज़ उछालिये कीचड़ बात दूर तलक तो पहुंचे क्या मिलेगा रोज़ सड़कों पे उतरकर उसको समझ नहीं आया  अना-ज़ाद* के तेज़ लहजे मंज़ूर कैसे करते हम भी रखते हैं अना-परस्ती* उसको समझ नहीं आया जिस्मानी नहीं मेरी रूह में बसना था सखी मुझको समझना है कैसे उसको समझ नहीं आया थम जाती है ये दुनिया उसके नज़र मिलाते ही मुझसे मैं उसके इशारों को कैसे समझता उसको समझ नहीं आया फिर वो रोता भी है और मिन्नतें भी करता है रह-रहकर बुरी अदाकरी पकड़ लेता हूँ मैं उसको समझ नहीं आया - राहुल अभुआ 'ज़फर'✍️ (अना-ज़ाद* - अहंवादी, Egoist  अना-परस्ती* - अभिमान, Pride) आने वाली किताब "मैं शून्य ही सही" से कुछ अंश Coming soon on Amazon, Flipkart and in Kindle version also. #MainShunyaHiSahi #RahulAbhua #BFC #Zafar #RahulKaramchandAbhua #UskoSamjhNahinAaya

अधूरी बातें (कहानी) – राहुल अभुआ

अधूरी बातें - राहुल अभुआ सोनाली ने अपनी कॉफ़ी को टेबल पर रखते हुए लैपटॉप ON किया तो देखा कुछ ईमेल्स आये हुए हैं, वो उन आये हुए ईमेल्स को देख ही रही थी, सबसे ऊपर जो ईमेल था वो उसकी पुराने ऑफिस की साथी जया का था, जहाँ वो 12 साल पहले कॉलेज के ख़त्म होने के बाद जॉब करने लगी थी। ये ईमेल जया और बाकी के कुछ साथियों ने मिलकर सभी कलीग्स को भेजा है जिसमे लिखा है की वो सब एक री-यूनियन प्लान कर रहे हैं जिसमे ऑफिस के सभी साथी होंगे। जया ने ईमेल में बोल्ड लेटर्स में ये भी लिखा है की तुम्हे 36 कॉल्स लगाने पड़ते हैं पर तुम्हारा कॉल नहीं लगता है।  अक्सर यहाँ पहाड़ों में थोड़ी नेटवर्क की दिक्कत रहती ही है। उसने वो ईमेल पढ़कर ख़त्म किया ही था की उसके चेहरे पर एक खुशी आ गयी थी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखें मानो कबसे चाह रही हो की उसे कम से कम एक बार तो यहाँ हिमाचल से निकलकर वापस अपने शहर दिल्ली हो आना चाहिए था। सोनाली यहाँ हिमाचल में पिछले 8 सालो से रह रही है, माँ के देहांत के बाद से ही वो दिल्ली छोड़कर यहाँ हिमाचल के मंडी शहर में शिफ्ट हो गयी थी।  ईमेल को पढ़ने के बाद उसने कुछ देर सोचा, फिर उसे खयाल आ...

उसके बदन की खुशबू से – राहुल अभुआ | Uske Badan Ki Khushbu - Rahul Abhua

उसके बदन की खुशबू से उसके बदन की खुशबू से महकती थी शामें मेरी उसके बदन पर मैंने अपना नाम लिखा देखा है तुम जो करते हो दावा उसको चाहने का तुमने उसकी खिड़की में कभी चाँद देखा है उसकी महफ़िल से गया था मैं जब उठकर सारी महफ़िल ने उसके लफ्ज़ो में मेरा निशा देखा है मेहँदी लगाने की इक अदद आदत भी छूट गयी उसकी  रंगो से बैर हो उसे, ये मैंने पहली दफा देखा है मौसम की सौंधी महक से खिल उठी है गली उसकी आज उसकी छत पे इक फूल खिला देखा है उसको रश्क़ रहा मुझसे की क्यूँ हूँ मैं ज़िन्दीक (नास्तिक) उसे खबर कहाँ थी कि मैंने उसमे खुदा देखा है तुम कभी मिलो तो ये पूछना उससे  'ज़फर' अब इश्तेहारों में है, क्या तुमने वो अख़बार देखा है।। - © राहुल अभुआ 'ज़फर'   (All rights reserved under SWA) #RahulAbhua #Poetry #Ghazal #Shayari #Shairi #HindiPoetry #HindiShairi #HindiShayari #UskeBadanKiKhushbuSe 

इंतज़ार (कहानी) – राहुल अभुआ

बाग हज़ारा बाग (लखनऊ) में बैठा साहिल इंतज़ार कर रहा था सबा के आने का, वो सबा के लिए झुमके और एक कत्थई रंग का दुपट्टा भी ले आया था। "5 बजे पहुंचना था लेकिन हमेशा मैं इंतज़ार करवाता हूँ इसीलिए ये सबा की बच्ची मुझे जानबूझकर परेशान कर रही है, आने दो मैं बताता हूँ इसको" – साहिल ने घड़ी देखते हुए खुदसे कहा, वो वहीं घूमते लोगों और हाथ में हाथ डाले प्रेमी जोडों को देखकर खुश हो रहा था, यूँ तो उसको प्रेमी जोडों का ऐसे हाथ में हाथ डालकर घूमना बड़ा अजीब लगता था, लेकिन इस वक़्त वो जोडों के प्यार और जज़्बात महसूस कर पा रहा था, कुछ देर बीती थी की साहिल ने घड़ी की तरफ देखा और फिर दूर तक निगाह दौड़ायी लेकिन सबा का कोई नाम-ओ-निशान नहीं था। अब साहिल को बड़ा अजीब लगा, उसने चाहा की वो बाहर देख कर आये लेकिन उसे डर था की अगर वो बाहर गया और उस बीच सबा इधर आ गयी और वो उसे नहीं मिला तो फिर दिक्कत होगी।  उन दोनों को किसी तरह आज ही बनारस के लिए निकलना था और कल शाम को निक़ाह के बाद अपनी ज़िन्दगी शुरू करनी थी। साहिल को ख़याल आने लगे की शायद सबा नहीं आयेगी "सबा धोका नहीं दे सकती मुझे, उसी ने तो मुझे ...

ये ज़माने लौट आएंगे – राहुल अभुआ

ये ज़माने लौट आएंगे हम न सही हमसे दीवाने लौट आएंगे तुम शजर फिर बदलोगी फस्ल-ए-गुल के बाद पतझड़ के ज़माने लौट आएंगे – राहुल अभुआ ‘ज़फर’ (फस्ल-ए-गुल - बसंत ऋतु, Spring time) #Sher #RahulAbhua #Writeups #MainShunyaHiSahi #Zafar #hindi #Shayari 

स्त्रीत्व

लखनऊ | यह तस्वीर देखने भर से आपको बस इतना ही पता चलता है कि ई-रिक्शा है, जिसकी ड्राइवर ग़ैर-मामूली तौर पर एक महिला हैं.  यह महिला बिठाना देवी हैं. महानगर में रहती हैं. यह ई-रिक्शा उन्होंने अपनी मजदूरी से जुटाई रक़म से ख़रीदा है. यों इसमें भी कोई ख़ास बात नहीं.  ख़ास बात मगर यह है कि लॉकडाउन के दौरान जिन राहगीरों को कोई साधन नहीं मिलता, उन्हें वह ठिकाने तक छोड़ती हैं मगर उनसे भाड़ा नहीं लेतीं. इसी तरह अस्पताल के लिए निकले मरीज़ों को उनके ई-रिक्शा में सवारी का कोई पैसा नहीं देना होता.   ये महिलाएं मिसाल हैं, वो नहीं, जो बपौती और ढेड़ मानसिकता के साथ रोड़ पर चीखने को फेमिनिज्म कहें।

मैं मेरी योनि नहीं मेरा मन हूँ मैं - राहुल अभुआ

कविता - योनि लो मेरी योनि ले लो, शायद तब तुम मुझको समझ पाओ  उस 2 मिनट की उत्तेजना के बाद शायद समझो  की ये बस एक मांस का टुकड़ा मात्र है जो हम स्त्रियों में  उस बनाने वाले ने किसी वजह से बनाया,  लेकिन मैं मेरी योनि नहीं मेरा मन हूँ मैं समझो मुझे, परे रख कर वो सारी हवस समझो मुझे की मैं मेरी योनि नहीं मेरा मन हूँ मैं.. बस में होता तो सवाल करती  उस ख़ुदा से - ये छुआ-छूत क्यों भला? देनी थी एक योनि उन कुछ पुरूषों को भी शायद फिर बच जातीं   वो मासूम बच्चियां, वो लड़कियां, वो स्त्रीयाँ  जो उभरे हुए स्तनो और इक योनी की वजह से शिकार हो गयीं हैवानियत का, सहते मासिक पीड़ा ये लोग भी  नज़रों से चीरे जाते हर पल  तो शायद समझते की मैं मेरी योनि नहीं मेरा मन हूँ मैं.. - राहुल अभुआ 'ज़फर' ✍️ | @RahulAbhuaOfficial YouTube Link - https://youtu.be/32G8Z8oMR6M (All rights reserved under SWA)  

कयामत, खुदा और हम – राहुल अभुआ

क़यामत की रोज़ जब हम वहां पहुंचेंगे तो देखेंगे वो ईश्वर वहां खड़ा सभी को एक साथ बिठा रहा होगा हाँ सभी को, अच्छा-बुरा करने वाले सभी को क्यूंकि उसकी प्रोग्रामिंग में  नर्क स्वर्ग सब पृथ्वी पर ही है उसके वहां तो सब बराबर ही होंगे देख लेना! - राहुल अभुआ 'ज़फर'