कविता - योनि
लो मेरी योनि ले लो,
शायद तब तुम मुझको समझ पाओ
उस 2 मिनट की उत्तेजना के बाद
शायद समझो
की ये बस एक मांस का टुकड़ा मात्र है
जो हम स्त्रियों में
उस बनाने वाले ने किसी वजह से बनाया,
लेकिन मैं मेरी योनि नहीं
मेरा मन हूँ मैं
समझो मुझे,
परे रख कर वो सारी हवस
समझो मुझे
की मैं मेरी योनि नहीं
मेरा मन हूँ मैं..
बस में होता तो सवाल करती
उस ख़ुदा से -
ये छुआ-छूत क्यों भला?
देनी थी एक योनि उन कुछ पुरूषों को भी
शायद फिर बच जातीं
वो मासूम बच्चियां, वो लड़कियां, वो स्त्रीयाँ
जो उभरे हुए स्तनो और इक योनी
की वजह से शिकार हो गयीं हैवानियत का,
सहते मासिक पीड़ा ये लोग भी
नज़रों से चीरे जाते हर पल
तो शायद समझते
की मैं मेरी योनि नहीं
मेरा मन हूँ मैं..
- राहुल अभुआ 'ज़फर' ✍️ | @RahulAbhuaOfficial
YouTube Link - https://youtu.be/32G8Z8oMR6M
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