अधूरी बातें - राहुल अभुआ
सोनाली ने अपनी कॉफ़ी को टेबल पर रखते हुए लैपटॉप ON किया तो देखा कुछ ईमेल्स आये हुए हैं, वो उन आये हुए ईमेल्स को देख ही रही थी, सबसे ऊपर जो ईमेल था वो उसकी पुराने ऑफिस की साथी जया का था, जहाँ वो 12 साल पहले कॉलेज के ख़त्म होने के बाद जॉब करने लगी थी। ये ईमेल जया और बाकी के कुछ साथियों ने मिलकर सभी कलीग्स को भेजा है जिसमे लिखा है की वो सब एक री-यूनियन प्लान कर रहे हैं जिसमे ऑफिस के सभी साथी होंगे। जया ने ईमेल में बोल्ड लेटर्स में ये भी लिखा है की तुम्हे 36 कॉल्स लगाने पड़ते हैं पर तुम्हारा कॉल नहीं लगता है।
अक्सर यहाँ पहाड़ों में थोड़ी नेटवर्क की दिक्कत रहती ही है। उसने वो ईमेल पढ़कर ख़त्म किया ही था की उसके चेहरे पर एक खुशी आ गयी थी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखें मानो कबसे चाह रही हो की उसे कम से कम एक बार तो यहाँ हिमाचल से निकलकर वापस अपने शहर दिल्ली हो आना चाहिए था। सोनाली यहाँ हिमाचल में पिछले 8 सालो से रह रही है, माँ के देहांत के बाद से ही वो दिल्ली छोड़कर यहाँ हिमाचल के मंडी शहर में शिफ्ट हो गयी थी।
ईमेल को पढ़ने के बाद उसने कुछ देर सोचा, फिर उसे खयाल आया -
“ओह्ह हो, कबीर भी तो होगा वहां। ओह गॉड मैं उसे फेस नहीं करना चाहती बस” – सोनाली ने सोचते हुए खुदसे कहा
“पर ये भी तो हो सकता है की शायद वो भी यही सोच रहा हो और वो आये ही न, वैसे भी कहाँ उसे ऐसे गेट-टूगेदर्स पसंद है, let it be, देखा जायेगा”
सोनाली काफी समय से दिल्ली वापस जाने की एक वजह ढूंढ रही थी, न जाने कितनी बार उसने मन बनाने की कोशिश की लेकिन हमेशा उसने मन की न सुनकर दिल की सुनी, शायद इसी वजह से चाहते हुए भी वो वापस नहीं जा सकी, लेकिन इस वक़्त वो अपना मन बना चुकी थी। उसने कॉफ़ी का एक सिप लिया और सोचने लगी और वो पुराने दिनों में चली गई... –
“ये कबीर आज आया क्यों नहीं अभी तक? सवा 11 बज चुके हैं और इसका कोई अत-पता नहीं है, मिताली मैम फिर से गुस्सा करेंगी और इस बार तो मैं नहीं बचाने वाली इसको” – सोनाली ने अपने डेस्क पर रखी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा,
सोनाली और कबीर कॉलेज से साथ दोस्त हैं। कॉलेज के बाद इन दोनों के साथ साथ जाया और ऋतू की भी इस एमएनसी में जॉब लगी थी, चारों की एक अच्छी बॉन्डिंग थी, लेकिन कबीर कॉलेज टाइम से ही लेट-लतीफ़ रहा है। हमेशा अटेंडेंस शार्ट रहा करती थी उसकी, क्लासेज़ बंक करके उसका एक ही ठिकाना था वो था क्रिकेट ग्राउंड जहाँ वो और उसके लफंडर दोस्त हमेशा पाये जाते थे। कॉलेज में आजतक एक असाइनमेंट तक कभी उसने खुद नहीं बनाया, उसका ये असाइनमेंट्स बनाने का काम कभी परुल, कभी सोनिया, कभी प्रीती तो कभी सोनाली ने किया, हमेशा दूसरी लड़कियों का कबीर के असाइनमेंट्स बनाना सोनाली को बुरा लगती थी इसलिए थर्ड सेमेस्टर के बाद से ही कबीर के सारे असाइनमेंट्स उसने खुद लिखे ताकि कोई और लड़की उसके आसपास भी न आ पाए, सोनाली हमेशा से चाहती थी कबीर को लेकिन कभी इज़हार न कर सकी।
“कहाँ थे तुम? मिताली मैम बस आने को हैं। कभी टाइम पर नहीं आ सकते क्या?” – सोनाली ने कबीर के आते ही उससे कहा,
“यार तुम सब लोग पागल हो क्या? नीचे से लेकर यहाँ तक सब बस लेट आने की वजह से टोके जा रहे हो, ड्राइव कर रहा था तुम कॉल्स पर कॉल्स कर रही हो, फ़ोन उठाऊ या ड्राइव करके जल्दी से जल्दी ऑफिस पहुंचू मैं?” – कबीर ने गुस्से में कहा,
सोनाली उसे देख रही थी, वो परेशान लग रहा था। उसकी हमेशा से आदत है जब वो परेशान होता है या उसके दिल में कुछ बात होती है जो उसे परेशान कर रही हो तो वो कभी किसी से शेयर नहीं करता है और ऐसे ही गुस्से में रहता है कुछ समय के लिये,
उसके बाद सोनाली ने कबीर से कुछ नहीं कहा और अपने काम में लग गयी।
लंच टाइम में सोनाली कैंटीन में जया के साथ लंच फिनिश करके बाहर कॉरिडोर की तरफ आयी तभी कबीर वहां आया।
“जया 5 मिनट दोगी” – कबीर ने जया से कहा
जया वहां से जाने ही लगी थी की सोनाली ने उसे रोकते हुए कहा – “जया रुको न आती हूँ मैं भी”
जया को समझ नहीं आया की वो रुके या जाए, कबीर ने जया को इशारा करके समझाने की कोशिश की,
“क्या यार तुम दोनों बोर करोगे मैं निकलती हूँ , साक्षी को प्रोजेक्ट में भी हेल्प करनी है वरना बॉस जान खा जायेगी” – ये कहकर जया चली गयी,
“सुबह के लिए सॉरी सोनाली, मैं जानता हूँ, रूड हो जाता हूँ कभी कभी, लेकिन मेरा वो मतलब नहीं था” – कबीर ने सोनाली से कहा
“हो गया तुम्हारा? अब ये बताओ क्या चल रहा है?” – सोनाली ने उससे पूछा,
“कुछ भी नहीं बस रात को ठीक से सोया नहीं सुबह चीज़े नहीं मिल रही थी, ट्रैफिक भी था बस चिढ़चिढ़ा सा था इसी वजह से, आई एम रियली सॉरी सुबह के लिए” – कबीर ने कहा,
उसके बाद सोनाली ने कुछ नहीं कहा, पर वो जानती थी की कबीर झूठ बोल रहा है और कुछ भी हो जाये वो कभी किसी से शेयर नहीं करता अपने मन की बातें,
“ओके” – सोनाली ने कहा और कॉरिडोर से चलते हुए वो बिल्डिंग की बाहर की तरफ आए।
शाम हो चुकी थी, कबीर आज जल्दी ही निकल गया था ऑफिस से। सोनाली ने भी अपना काम ख़त्म कर ही लिया था और अब वो भी घर के लिए निकल रही थी। कॉरिडोर की तरफ उसे जया मिली और दोनों साथ में कैब के आने का वेट करने लगे। कुछ ही देर में कैब आ गयी और दोनों घर के लिए रवाना हुए।
“क्या रहा तुम दोनों का? क्या बातें हुई? प्रोपोज़ कर दिया क्या कबीर ने आज?” – जया ने एक के बाद एक सवाल पूछे सोनाली से
“क्या कह रही हो तुम? पागल हो क्या जया, नहीं बाबा ऐसा कुछ नहीं है, वो तो बस सुबह के लिए सॉरी कहने आया था” – सोनाली ने जया को बताया
“अच्छा…तो उसमे इतनी प्राइवेसी की क्या ज़रूरत थी? जानती हूं तुम भी लाइक करती हो उसे और वो भी अबसे नहीं कॉलेज में थे तबसे। वो बुद्धु है तो कम से कम तुम ही समझदार बनो और कह दो उसको न” – जया ने सोनाली से कहा,
“कुछ भी मत कहो तुम जया, ऐसा कुछ भी नहीं है हां। वी आर जस्ट फ्रेंड्स ओके” – सोनाली ने जया को समझाते हुए कहा
“तुम कहती हो तो मान लेते हैं, वैसे ऐसा है नहीं, सिर्फ दोस्ती तो नहीं है, एटलीस्ट तुम्हारी तरफ से तो बिलकुल भी नहीं” – जया ने उसको चिढाते हुए कहा,
“हाँ हाँ तुम चुप रहो, बस भैया यहीं आगे रोक दीजियेगा.." – सोनाली ने ड्राइवर से कैब को रोकने के लिए कहा।
सोनाली कैब से उतर गई, उसके दिमाग में अभी जया की कही बातें ही चल रही थी। अंदर ही अंदर वो कबीर को बेइन्तेहा चाहती थी पर उसे सामने से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी,
रात ढल चुकी थी, सोनाली अपनी डायरी लिख रही थी, लिखते-लिखते उसने पक्का इरादा कर लिया की वो अब और इंतज़ार नहीं करेगी और खुद ही कबीर से कह देगी की वो उससे प्यार करती है। उसने वहीं पर लगे आईने में खुद को देखा और सोचने लगी, खुद को मोटीवेट किया और मोबाइल पर कबीर का नंबर निकाला, पर अभी वो कशमकश में थी की वो कैसे शुरुवात करे। काफी देर तक मोबाइल स्क्रीन पर कबीर के नंबर को देखती रही और अचानक कॉल लगा दी।
काबीर ने 2 रिंग के बाद कॉल उठया
“हेलो”
सोनाली को कुछ समझ नहीं आया की क्या कहे,
“हेलो सोनाली” – कबीर ने फिरसे कहा,
“वो मैं ये पूछ रही थी की तुम्हारे पास विंडोज 7 होगी तो कल लेते आओगे?” – सोनाली ने अचानक से घबराते हुए कहा, उसे कुछ समझ ही नहीं आया और जो भी दिमाग में था उसने तपाक से वही कह दिया।
“विंडोज 7?” – कबीर ने पूछा, कबीर को भी समझ नहीं आया की विंडोज 7 के लिए सोनाली ने उसे कॉल किया,
खैर उसने कहा “ठीक है मैं लेता आऊंगा”
“ओके, थैंक यू” – ये कहते हुए सोनाली ने कॉल कट कर दी और मोबाइल को रखते हुए एक गहरी सांस ली। वो अपनी इस हरकत पर हंस रही थी।
कुछ देर तक वो फिर से सोचती रही और फिर सोनाली ने खुदसे वादा किया की वो कल ऑफिस में किसी न किसी तरीके से कबीर को कह ही देगी, वो अब और इंतज़ार नहीं करना चाहती थी।
सोनाली ने अलमारी खोल कर कल पहनने के लिए कपड़े निकाले, उसने हलके आसमानी रंग का शलवार-सूट निकला जो काफी समय से खरीदा हुआ था लेकिन कभी पहना नहीं था और कहीं न कहीं ये कबीर की भी पसंद थी।
अगली सुबह जब वो ऑफिस पहुंची तो देखा कबीर आज भी लेट है। कुछ देर में कबीर आया, उसके पास एक छोटा सा बैग भी था जिसे उसने वहीं डेस्क पर रखा और एक पेनड्राइव देते हुए सोनाली से बोला
“ये लो विंडोज 7 है प्रे-एक्टिवेटिड”
“ये?” – सोनाली ने उसे देखते हुए कहा
“हाँ तुमने मंगवायी थी न” – कबीर ने बोला
“ओह... थैंक यू” – सोनाली ने कबीर से कहा,
उसे तो याद भी नहीं था की वो सच में ले ही आएगा। सोनाली इंतज़ार में थी की आखिर कैसे कबीर से कहे, वो सोचने लगी की वो एक नोट पर लिख कर उसे कह दे या फिर कोई और तरीका सोचे, लेकिन अंत में उसने डिसाइड किया की वो कबीर से सामने से कहेगी लंच टाइम में। वो घड़ी पर नज़र टिकाये थी। लंच हुआ तो उसने कबीर से कहा –
“कबीर, सुनो…वो ज़रा कुछ बात करनी थी”
“हाँ कहो न” – कबीर ने कहा
“यहाँ नहीं, लंच करने नहीं चल रहे?” – सोनाली ने पूछा,
“ठीक है, एक काम करो तुम कैंटीन में पहुंचे मैं बस 5 मिनट में आया” – कबीर ने सोनाली से कहा और बेग लेकर दूसरी तरफ चला गया,
सोनाली कैंटीन में कबीर का वेट कर रही थी, कुछ देर में कबीर आया और सोनाली के पास आकर बैठा। तभी जया भी कैंटीन में आयी और उसने सोनाली और कबीर को देखकर स्माइल दी और वहीं दुसरी तरफ प्रेरणा के साथ बैठ गयी।
“अरे वाह आज तो राजमा हैं...अच्छी खुशबू है…हाँ तो बताओ ना क्या कह रही थी तुम?” कबीर ने सोनाली से पूछा
“वो कबीर, कुछ इम्पोर्टेन्ट बात थी” – सोनाली ने झिझकते हुए कहा,
“हाँ कहो, क्या हुआ” – कबीर ने पूछा
सोनाली ने किसी तरह से हिम्मत जुटायी और एक साँस में कबीर से कहा
"कबीर i really like you कॉलेज से लेकर अबतक i really care for you and now i truly realised that i seriously love you" - सोनाली ने कहा
सोनाली का दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था, वहां उन दोनों के बीच शांति पसर गयी थी, कबीर सोनाली की तरफ देख रहा था और सोनाली थोड़ा ऑकवर्ड फील कर रही थी। कबीर ने एक लम्बी सांस भरी और वो कुछ कहने को ही था की तभी पीयूष वहां आया और कबीर से हाथ मिलाकर उसने कबीर को मुबारकबाद देते हुए कहा -
"भाइ बहुत बहुत मुबारक, विनीत ने बताया इंगेजमेंट की डेट का"
पियूष की ये बात सुनकर मानो सोनाली के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी हो, उसे इस बात पर यकीन ही नहीं हुआ की अभी अभी तो उसने कबीर के सामने अपने प्यार का इज़हार किया और अभी उसे सुनने में आ रहा है की कबीर engage होने वाला है।
कबीर ने सोनाली की तरफ देखा और पियूष को थैंक यू कहा, पियूष के वहां से निकल जाने के बाद कबीर ने सोनाली की तरफ देखा और सोनाली अबतक समझ गयी थी की वो जो छोटा बैग जो कबीर के पास आज सुबह था उसमें शायद इन्विटेशन कार्ड्स थे। सोनाली को मन ही मन अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था,
"सोनाली मैं क्या कहूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा पर मैं रेस्पेक्ट करता हूँ तुम्हारे एमोशन्स की और यक़ीन मानो इसमें कोई बुराई नहीं है। मैं भी तुम्हे पसंद करता हूँ लेकिन"
ये लेकिन सुनते ही सोनाली ने अपनी ऊँगली को ज़ोर से पकड़ा अपने ही नाखून से दबाया, उसकी नज़रें झुकी हुई थी और वो ख़ामोशी से कबीर को अपनी बात कहते सुनना चाहती थी और किसी तरह से यहाँ से निकलकर घर वापस चले जाना चाहती थी
"लेकिन मैने काफी सोचने समझने और जानने के बाद ये शादी का डिसीजन लिया है, लड़की भी अच्छी है और मुझे समझती भी है। मैं क्या कहूं तुमसे इस वक़्त कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे, पर मैंने हमेशा तुम्हे एक अच्छा दोस्त समझा और हम बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन ये लव – मैं श्योर नहीं हूँ की मैं तुम्हारे लिए ऐसा फील करता हूँ या नहीं, पर हम अच्छे दोस्त ज़रूर रहेंगे"
कबीर ये सब कह ही रहा था की सोनाली खड़ी होकर वहां से जाने लगी, सोनाली जानती थी की अगर उसने एक शब्द भी कहा तो उसकी आवाज़ लड़खड़ा जाएगी और वो वहीं रो देगी। कबीर उसे जाते हुए देख रहा था, वहीं दुसरी तरफ बैठी जया भी ये सब देख पा रही थी।
सोनाली बीते दिनों की याद से वापस आज में आई, बाहर बारिश भी होने लगी थी। पहाड़ों में मौसम का कुछ पता नहीं होता, उसने कॉफ़ी ख़त्म की और फिर मोबाइल निकालकर टाइप करना शुरू किया, उसने जया को टेक्स्ट में लिखा की उसे अभी ईमेल मिला और वो वीकेंड पर दिल्ली पहुँच जाएगी इस री-यूनियन के लिए,
शाम होने को थी मौसम भी खुल गया था। सोनाली वॉक के लिए निकली थी। 2 चक्कर लगा कर वो बेंच पर बैठी कुछ देर रेस्ट कर रही थी, तभी उसने पलट कर देखा तो वहां ठीक उसके पीछे कोई शख्स खड़ा था, उसने गौर से देखा तो ये कबीर ही था। ब्लू जींस, वाइट शर्ट एंड ग्रे ब्लेजर में स्पेक्स लगाये कबीर वहां खड़ा मुस्कुरा रहा है। सोनाली को अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हुआ।
"भूल तो नहीं गयी होगी न सोनाली?" - कबीर ने कहा
"तुम यहाँ? यहाँ कैसे, मतलब यहाँ हिमाचल में क्या कर रहे हो?" - सोनाली ने उससे पूछा
"क्यूं मेरा यहाँ आना मना है क्या?" - कबीर ने मुस्कुराते हुए सोनाली से कहा,
उसकी मुस्कान आज भी हमेशा की तरह से खूबसूरत थी
"नहीं, मेरा वो मतलब नहीं" - सोनाली ने कहा ही था कि तभी कबीर ने पूछा
"यहां बैठ सकता हूँ?"
"हां, बिलकुल" - सोनाली ने कहा
कबीर कुछ शांत सा लग रहा था ऐसा वो अमूमन रहता नहीं था, सोनाली उसका चेहरा आज भी पढ़ पा रही थी लेकिन वो समझ नहीं पा रही थी कबीर के यहाँ आने की वजह, ये बिलकुल अनएक्सपेक्टेड था।
"बिल्कुल बदली नहीं हो तुम, तुमने दिल्ली बिलकुल ही छोड़ दिया" - कबीर ने पूछा
"हाँ, वो बस काम के लिये" - सोनाली ने रूखे मन से जवाब दिया
"तुम अबतक गुस्सा हो उस बात के लिए मुझसे?" - कबीर ने एक लम्बी सांस भरते हुए सोनाली से पूछा
"क्या.... नहीं...नहीं तो, बिलकुल भी नहीं, उसमे तुम्हारी क्या गलती? मुझे ही समझना चाहिए था, खैर जाने दो" - सोनाली ने जवाब दिया
"पर शायद मुझे तब सोचना चाहिए था, सोचना चाहिए था हमारे बारे में" - ये कहता हुआ कबीर कुछ पल के लिए रुक गया
सोनाली को कुछ समझ नहीं आया की आखिर कबीर कहना क्या चाहता है
"मैं समझी नहीं? क्या मतलब? सब ठीक तो है न?" - सोनाली ने उसकी फ़िक्र करते हुए उससे पूछा
"हाँ, बस मुझे जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए थी उस शादी की, गलत साथी का साथ होना ज़िन्दगी का सबसे बड़ा श्राप होता है"
सोनाली ने जैसे ही ये सुना वो समझ नहीं पायी की आखिर कबीर क्या कहना चाहता है उससे।
"तुम क्या कह रहे हो कबीर? आखिर क्या हुआ है? सब ठीक तो है तुम्हारी लाइफ में?" - सोनाली ने पूछा
कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद कबीर ने कहा - "हाँ बाबा सब ठीक है, मैं बस मज़ाक़ कर रहा था"
ये कहकर कबीर हँस दिया, सोनाली जानती थी वो झूठ बोल रहा है लेकिन अब वो कबीर पर अपना कोई अधिकार नहीं दिखाना समझती थी। सोनाली वहां रुकना चाहती थी पर कहीं न कहीं उसके मन में एक गुस्सा था कबीर को लेकर, उसके दिल ने कहा की उसको वहां ठहरना चाहिए लेकिन मन वहां से जाने के लिए कह रहा था और ये इतने सालो में पहली बार था जब सोनाली ने अपने दिल की नहीं मन की सुनी थी। सोनाली खड़ी हुई और कबीर से जाते हुई बोली -
"तुम री-यूनियन में आओगे न?"
"नहीं मैं नहीं आ पाऊंगा" - कबीर ने जवाब दिया
इस जवाब की उम्मीद सोनाली को थी, उसे यक़ीन था कबीर नहीं आएगा इसलिए उसने उससे पलट कर सवाल करने का नहीं सोचा। वो वापस जाने के लिए चलने लगी ही थी की कबीर ने उसको जाते हुए देखकर कहा
"सोनाली..वो तुमने जो सूट डाला था उस दिन, उसमे बहुत अच्छी लग रही थी तुम, उस दिन मैं कॉम्पलिमेंट करना भूल गया था वोहि आज कहने आया हूं...चलो चलता हूँ हाँ, शाम भी हो गई है... बाय"
वो कहकर दूसरी तरफ जाने ही लगा था की सोनाली ने कहा -
"बस यही कहने आये थे?"
कबीर ने पलटकर देखा और मुस्कुरुते हुए हाँ में सिर हिला दिया। सोनाली उसके मुस्कान भरे चेहरे को वहीं खड़े देख रही थी, कबीर वापस जाने लगा सोनाली अब भी वहीं खड़ी उसको दूर तक जाते देख रही थी और वो धीरे धीरे ओस से घिरता हुआ ओझल हो गया। सोनाली भी वापस घर के लिए जाने लगी।
सोनाली घर पहुंची ही थी की उसने देखा की उसके मोबाइल पर जया की 4 मिस्ड कॉल थी, सोनाली ने जया को कॉल किया, जया ने फ़ोन उठाया और हेलो कहा
"हाँ जया तुमने कॉल किया था? अभी वापस आयी मैं वॉक से, क्या हुआ?"
"यार सोनाली मैं कबसे कॉल कर रही थी, वो सुनो...वो री-यूनियन का प्लान कैंसिल करना पड़ा है" - जया ने सोनाली को बताया
"पर क्यों क्या हुआ?" - सोनाली ने पूछा
"वो कबीर था न यार उसकी एक एक्सीडेंट में मौत हो गयी, अभी विनीत का कॉल आया था की सुबह कबीर हिमाचल हाईवे से वापस लौट रहा था और एक ट्रक से उसकी कार की टक्कर हो गयी "
ये सुनते ही सोनाली के हाथ से फ़ोन नीचे गिर गया, उसकी आँखें छलकने लगी थी, उसे यक़ीन नहीं हो रहा था की अभी बस कुछ देर पहले ही तो वो कबीर से मिली थी। उसको कबीर से अभी हुई मुलाक़ात की सब बातें मानो उसके सामने से गुज़र रही थी, कबीर का उसके पीछे खड़ा होना, वहां उसके साथ बेंच पर बैठना, उसका मुस्कुराना सबकुछ उसके सामने चल रहा था और वो खुद पर गुस्सा थी की आखिर क्यों नहीं उसने इस बार भी अपने दिल की नहीं सुनी, वो निराश थी की आखिर क्यों नहीं वो वहां रुकी और आखिर क्यों उसने उसको ऐसे ही जाने दिया। वो बुरी तरह फूट-फूटकर रोने लगी।
- राहुल अभुआ 'ज़फर' | @RahulAbhuaOfficial
(ALL RIGHTS RESERVED UNDER SWA)
Comments
Post a Comment