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Showing posts from October, 2024

सुनो, वो लड़की है किधर - राहुल अभुआ

सुनो, वो लड़की है किधर? जो शराब के प्याले चियर्स कर रातों को देश बचाने जाती थी फिर नशा उतरते ही ख़ुद को ख़ाली बंजर जो पाती थी जो झूठ ओढ़ हर मैल लिए Women power चिल्लाती थी जो एक जगह से दूजी जगह बस मन बहलाने जाती थी जो छल्ले बना, कई बाहों में Freedom का गाना गाती थी जो हाथ जोड़ और नाक रगड़ तुम्हे अपना बनाना चाहती थी  फिर यार नए संग अपनी हर पहचान मिटाना चाहती थी जो कहकर ख़ुद को आज़ाद रूह हर जिस्म को पाना चाहती थी अपने दिल का सब ख़ालीपन Insta पे छुपाना चाहती थी वो है कहाँ अब खोजो तो निर्भया, साक्षी और कइयों को जो न्याय दिलवा दिया हो तो अमाँ, अब कोई उसको पूछो तो हाँ वो, ख़ाली कुर्सी, सुनसान सड़क अब ढूँढों उसे वो गई किधर है कहाँ अभी वो शाम सहर सुनो, वो लड़की अब है किधर? - राहुल अभुआ | (किताब: मैं शून्य ही सही)

माथे का चुम्बन - हिंदी कविता - राहुल अभुआ

  रात की चाहत होती है माथे का चुम्बन जो हल्की आंच की तरह जलते बदन का सहारा हो सारी रात, उजले दिन को चाहिए होती है छुहन हाथों की जैसे पानी पर लिखावट की तासीर खो जाती है वैसे ही खो जाते हैं उजले दिन, महकती शामें और सर्द रातें जो नहीं खोते वो हैं - माथे का चुम्बन, हाथों की गर्म छुहन और रातों को जागकर देखे सितारे  - राहुल अभुआ #romance #love #poetry #mainshunyahisahi #rahulabhua #kavitaye 

मज़हब नहीं सिखाता रंगों में बैर करना - राहुल अभुआ

 ऐ रंगों को धर्मों में बाँटने वालो है कुछ सवाल मेरे जवाब तो दे दो हरा हो या गेरुआ जो भेद तुमने किया गर बपौती थी तुम्हारी  तो हरा उनको क्यों दिया? और दे भी दिया तो पूरा छीन लो करो रंग सारे अपने  झूमरू बन घूम लो ये बात कब तुम्हारी छोटी समझ में आएगी मज़हब नहीं सिखाता कम से कम रंगों में बैर करना - राहुल अभुआ - #humanity #poetry #prose #india #bharat #nationfirst #communal