अगर सब तय है
तो तय होगा
तुम्हारा रोज़ मुझे यूँ
छुप छुप कर देखना,
तो तय होगा
मेरा तुमसे कुछ भी
ना कह पाना,
तो तय ये भी होगा
कि मैं कहूँ या तुम्हारे
कहने का इंतज़ार करूँ
तय होगा कि हम
कहेंगे कि नहीं..
अगर सब तय है
तो तय होगा
कि इस खामोशी की भी
अपनी ही ज़ुबाँ होगी
तो तय होगा
कि हमारी नज़रों की जुस्तजू
शब्दों से भी आगे जाएगी
तो तय ये भी होगा
कि कुछ पल यूँ ही
थमे रहेंगे हमारे बीच
बिना कहे, बिना सुने
फिर भी सब कह जाएंगे
तय होगा कि कभी
रात की चुप्पी में
हम अपने दिल से वो कहेंगे
जो लफ़्ज़ों से नहीं कह पाए
तय होगा कि ये कहानी
शायद पूरी न भी हो
मगर अधूरी रहकर भी
ख़ास बन जाएगी…
- राहुल अभुआ (11-06-2025)
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