मुझे उसके रंग याद है
हर वो रंग जो बदला मौसम की तरह
शुरुवात 'सफेद' से हुई थी
जिसमे 'पीला' रंग मुझसा भरा
जब दो रंग यूं साथ मिले
हम दोनों के अंग संग खिले
फिर इक शाम मैंने रंग देखा 'काला'
उसने काट हथेली 'लाल' उसको कर डाला
वर्ष बीते और रंग बदले
हर मौसम उसके ढंग बदले
फिर..फिर इक दिन रंग देखा ऐसा
कोई नाम नहीं पर रंग था मैला
जब सब अपनी आंखों देखा सुना
'सरकारी कुर्सी' मैंने खाली करना चुना
- राहुल अभुआ । (किताब - मैं शून्य ही सही)
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