'आखिरी बार कब रोए थे तुम?'
काफी समय पहले, पर क्यूं?
'अंदर इतना सब रखा हुआ है पहले उसको निकाल दो, अच्छे से रो लो एक बार, मेरी बाहें हैं उसके लिए। कुछ भी अंदर मत रखो क्यूंकि जब ये बाहर निकलेगा तो हम दोनो की जगह बनेगी अंदर। वैसे भी तुम ही तो कहते हो ना की पात्र को खाली होना चाहिए..इतना खाली की उसमे वर्षा का जल समा सके..'
- राहुल अभुआ
(किताब - मैं शून्य ही सही)
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