खुद की खोज में जो निकले
वो मजे उड़ाएं अय्याशी में
दिखावे करते दिन-शाम-रात
बेहोश बड़े बद-हवासी में
सिद्धार्थ जो खोजे बुद्ध हुए
वर्धमान महावीर कहलाए
ये हवस, धुआं और फरेब लिए
तुम खोजो खुद को बाज़ारों में
क्यूं खोज खुद की में निकले तुम
बैठो, सोचो, आंखें खोलो
जो पाना सच में खुद को है
इक बार तो खुद से सच बोलो
ओ, खुद की खोज में जाने वालो
जानो.. प्यार नहीं अय्यारी* में
खुद की खोज में जो निकले
वो मजे उड़ाएं अय्याशी में..
- राहुल अभुआ | (किताब - मैं शून्य ही सही)
(*अय्यारी – छल, धूर्तता, वेश बदलकर काम निकालना)
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