वो लड़का सही है लेकिन
मैं कैसे बिता पाऊंगी
सारी ज़िंदगी एक ही महबूब के साथ?
हाँ, वो लड़का सही है लेकिन
वो ग़ालिब साहिर पढ़ता है
कविताएं–कहानियां कहता है
ना तो जाता Disc कभी
और ना हुक्का ही वो पीता है
बिन इस सबके ज़िंदगी कैसी?
मैं रही वही तो
मेरी FREEDOM कैसी?
वो मुझसे चाहे loyalty
मेरी फितरत फिरना डाली–डाली
मुझसे मांगे साथ वो सदियों वाला
मुझे दोस्त चाहिए मेरी सखियों वाला
वो लड़का सही तो है लेकिन
मैं कैसे बिता पाऊंगी
सारी ज़िंदगी एक ही महबूब के साथ?
- राहुल अभुआ
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