मेरे अक्षर तुम्हारी ज़ुबानी
जैसे मेरी अधूरी कहानी
भला ऐसा तो कुछ लिखा भी नहीं
साधारण था मेरा सब वही
आज सुना तुमसे तो खूबसूरत लगा
बैठा, घूमा फिर सोचने लगा
साधारण कविता अब सुंदर कैसे?
जादू सा हो हर शब्द में जैसे
ये शब्द नहीं लगते मुझको
ना जाने क्यूं मेरे लिखे जैसे
'बुरा लिखते हो' - था कहा किसी ने
है याद मुझे दिल था टुकड़े टुकड़े
तुम इक अलबेली-सी लगती हो
जो मेरे हर लिखे को पढ़ती हो
था कभी जो बुझा इक गलत लौ से
वो चराग़ तुमसे जगमगाया है
मेरे शब्द और बोल तुम्हारे
देखो, क्या खूबसूरत पल लाया है
– राहुल अभुआ (13-10-2023)
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