हम तुम दोनों दूर चलेंगे
सब शहरों से दूर, सब गाँवों से दूर
अपना आशियाना बसाएंगे
अम्बर छूती छत होगी..बादलों की
रेशम-सी सुंदर फ़र्श..माटी की
सूरज से लेंगे मोल उजाला
चंदा को कहेंगे दिन ढलने पे आना
बिस्लेरी नहीं झरनों का पानी पियेंगें
अंधकार होगा तो ही तो तारे दिखेंगे
दरख्तों पर हम झूले डालेंगे
गगन तक ऊंचे झोटे खायेंगे
सन्नाटे में इक दूजे की शांति सुनेंगे
दीपावली पर इन्द्रधनुष बुलायेंगे
तारों वाले दीप जलायेंगे
फिर रात ओढ़ हम-तुम मुस्काएंगे
तुम हो तैयार तो कहना मुझको
हम तुम दोनों दूर चलेंगे
सब शहरों से दूर, सब गाँवों से दूर..
- राहुल अभुआ 'ज़फर' (19-04-2021)
Comments
Post a Comment