उसके गालों का जो तिल है बहुत हसीं हो जाता है
जब वो मुस्काती है तो दिन उसका बन जाता है
वो झिझक-झिझक कुछ-कुछ कहती उसको
वो थोड़ा सहज-सहज उसे सुन पाता है
उसका चौबारे पर आकर उचक-उचक तारों को छूना
उसका लपक कर उसको छत पर थाम लेना
उस पल उसकी कांधे की लटें जब उसकी उंगली में उलझ जाती हैं
तब इक ख़ामोश सहमी लचक आंहों में भर जाती है
शर्म से गुलाबी चेहरा उसका जब खिल जाता है
उसके गालों का वो तिल बहुत हसीं हो जाता है
- राहुल अभुआ 'ज़फर' ✍️
@Rahulabhuaofficial
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