मैं हमेशा मानता हूं की 'रंग दीवारों के उतरते/बदलते हैं मीनारों के नहीं' आपकी सोच आपकी ज़िंदगी बनाती है। जिन लोगों की सोच से खेलना आसान हो उन्हें कुछ भी घटिया वस्तु को नयी सोच कहकर बेचा जा सकता है और उन्हें लगने लगता है कि क्रांति जो अबतक किसी ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई थी वो अब होने को है। ये ही हमारे देश के साथ एडवरटाइजिंग एजेंसीज करतीं हैं। जहां लोग आज कार्ल मार्क्स को पढ़कर मार्क्सवादी हो जाएं, अगले दिन भीम को पढ़कर उन्हें बिना जाने समझे जय भीम के नारे लगाने लगें (वैसे भीम को पूजना नहीं पढ़ना ज़रूरी है), फिर अगले किसी दिन गांधी को पढ़कर बिना समझे कुछ दिनों के लिए गांधीवादी हो जाएं, उन लोगों की अपनी सोच बढ़ने के बजाए वो ऐसी मानसिकता पाल लेते हैं की दुनिया में सभी कुछ जो हो रहा है उस सब पर हमसे ज़्यादा किसी को समझ नहीं, अंत में ये लोग जब उस गुमान से बाहर आते हैं तो देर हो चुकी होती है। क्रांति जा चुकी होती है, बाकी दुनिया आगे बढ़ चुकी होती है और ऐसे लोगों का अतीत सिग्नल पर खड़ा इनपर हँस रहा होता है। - राहुल अभुआ | Main Shunya Hi Sahi #RahulAbhua #MainShunyaHiSahi